हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थों व शास्त्रो में उस एक प्रभु/मालिक/रब/ खुदा/अल्लाह/राम/साहेब/गोड/परमेश्वर की प्रत्यक्ष नाम लिख कर महिमा गाई है कि वह एक मालिक/प्रभु कबीर साहेब है जो सतलोक में मानव सदृश स्वरूप में आकार में रहता है।
वेद में स्पष्ट लिखा है कि परमात्मा साकार है व सहशरीर है। देखिए यजुर्वेद व ऋग्वेद
यजुर्वेद अध्याय 19 मंत्र 25, 26 में लिखा है कि पूर्ण संत वेदों के अधूरे वाक्यों अर्थात् सांकेतिक शब्दों व एक चैथाई श्लोकों को पुरा करके विस्तार से बताएगा व तीन समय की पूजा बताएगा।
सभी का मानना है की प्रारब्ध कर्म भोगना ही पड़ता है। इसके विपरीत वेद में लिखा है की प्रारब्ध कर्म कट भी सकता है। यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 में स्पष्ट लिखा है कि परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है।
अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7 में स्पष्ट कर दिया कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है।
श्री देवी महापुराण से आंशिक लेख तथा सार विचार
श्रीमद्देवी महापुराण तीसरा स्कन्द अध्याय 1.3 - दुर्गा और ब्रह्म के योग से ब्रह्मा, विष्णु और शिव का जन्म
शिव महापुराण - श्री विष्णु, श्री ब्रह्मा तथा शिव की उत्पत्ति
कविर्देव(कबीर परमेश्वर) ने अपने द्वारा रची सृष्टि का ज्ञान स्वयं ही बताया है जो निम्नलिखित है
सर्व प्रथम केवल एक स्थान ‘अनामी(अनामय) लोक‘ था। जिसे अकह लोक भी कहा जाता है, पूर्ण परमात्मा उस अनामी लोक में अकेला रहता था। उस परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है।
तीनों गुण रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी हैं। ब्रह्म (काल) तथा प्रकृति (दुर्गा) से उत्प हुए हैं तथा तीनों नाशवान हैं‘‘
प्रमाण :– गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्री शिव महापुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार पृष्ठ सं. 110 अध्याय 9 रूद्र संहिता: ‘‘इस प्रकार ब्रह्मा विष्णु तथा शिव तीनों देवताओं में गुण हैं, परन्तु शिव (ब्रह्म–काल) गुणातीत कहा गया है।
वेदों, गीता जी आदि पवित्र सद्ग्रंथों में प्रमाण मिलता है कि जब–जब धर्म की हानि होती है व अधर्म की वृद्धि होती है तथा वर्तमान के नकली संत, महंत व गुरुओं द्वारा भक्ति मार्ग के स्वरूप को बिगाड़ दिया गया होता है। उस समय परमेश्वर स्वयं आकर या अपने परमज्ञानी संत को भेज कर सच्चे ज्ञान के द्वारा धर्म की पुन: स्थापना करता है। वह भक्ति मार्ग को शास्त्रों के अनुसार समझाता है। उसकी पहचान होती है कि...
जिन–जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा को प्राप्त किया उन्होंने बताया कि कुल का मालिक एक है। वह मानव सदृश तेजोमय शरीर युक्त है। जिसके एक रोम कूप का प्रकाश करोड़ सूर्य तथा करोड़ चन्द्रमाओं की रोशनी से भी अधिक है। उसी ने नाना रूप बनाए हैं। परमेश्वर का वास्तविक नाम अपनी–अपनी भाषाओं में कविर्देव (वेदों में संस्कृत भाषा में) तथा हक्का कबीर (श्री गुरु ग्रन्थ साहेब में पृष्ठ नं. 721 पर क्षेत्राीय भाषा में) तथा सत् कबीर