प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्री शिव महापुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार
पृष्ठ सं. 110 अध्याय 9 रूद्र संहिता
दूसरा प्रमाण:- गीताप्रैस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद् देवीभागवत पुराण जिसके सम्पादक हैं श्री हनुमान प्रसाद पौद्दार चिमन लाल गोस्वामी,
तीसरा स्कंद, अध्याय 5 पृष्ठ 123:-
उपरोक्त यह विवरण केवल हिन्दी में अनुवादित श्री देवीमहापुराण से है, जिसमें कुछ तथ्यों को छुपाया गया है। इसलिए यही प्रमाण देखें श्री मद्देवीभागवत महापुराण सभाषटिकम् समहात्यम्, खेमराज श्री कृष्ण दास प्रकाश मुम्बई, इसमें संस्कृत सहित हिन्दी अनुवाद किया है।
तीसरा स्कंद अध्याय 4 पृष्ठ 10, श्लोक 42:-
ब्रह्मा - अहम् महेश्वरः फिल ते प्रभावात्सर्वे वयं जनि युता न यदा तू नित्याः, के अन्ये सुराः शतमख प्रमुखाः च नित्या नित्या त्वमेव जननी प्रकृतिः पुराणा (42)।
हिन्दी अनुवाद:- हे मात! ब्रह्मा, मैं तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, नित्य नही हैं अर्थात् हम अविनाशी नहीं हैं, फिर अन्य इन्द्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं। तुम ही अविनाशी हो, प्रकृति तथा सनातनी देवी हो। (42)
पृष्ठ 11-12, अध्याय 5, श्लोक 8:-
यदि दयार्द्रमना न सदांऽबिके कथमहं विहितः च तमोगुणः कमलजश्च रजोगुणसंभवः सुविहितः किमु सत्वगुणों हरिः। (8)
अनुवाद:- भगवान शंकर बोले:-हे मात! यदि हमारे ऊपर आप दयायुक्त हो तो मुझे तमोगुण क्यों बनाया, कमल से उत्पन्न ब्रह्मा को रजोगुण किस लिए बनाया तथा विष्णु को सतगुण क्यों बनाया? अर्थात् जीवों के जन्म-मृत्यु रूपी दुष्कर्म में क्यों लगाया?
श्लोक 12:- रमयसे स्वपतिं पुरुषं सदा तव गतिं न हि विह विद्म शिवे (12)
हिन्दी - अपने पति पुरुष अर्थात् काल भगवान के साथ सदा भोग-विलास करती रहती हो। आपकी गति कोई नहीं जानता।
तीसरा स्कंद पृष्ठ 14, अध्याय 5 श्लोक 43:- एकमेवा द्वितीयं यत् ब्रह्म वेदा वदंति वै। सा किं त्वम् वाऽप्यसौ वा किं संदेहं विनिवर्तय (43)
अनुवाद:- जो कि वेदों में अद्वितीय केवल एक पूर्ण ब्रह्म कहा है क्या वह आप ही हैं या कोई और है? मेरी इस शंका का निवार्ण करें। ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर देवी ने कहा-
देव्युवाच सदैकत्वं न भेदोऽस्ति सर्वदैव ममास्य च।। योऽसौ साऽहमहं योऽसौ भेदोऽस्ति मतिविभ्रमात्।।2।। आवयोरंतरं सूक्ष्मं यो वेद मतिमान्हि सः।। विमुक्तः स तू संसारान्मुच्यते नात्रा संश्यः।।3।।
अनुवाद - यह है सो मैं हूं, जो मैं हूं सो यह है, मति के विभ्रम होनेसे भेद भासता है।।2।। हम दोनों का जो सूक्ष्म अन्तर है इसको जो जानता है वही मतिमान अर्थात् तत्वदर्शी है, वह संसार से पृथक् होकर मुक्त होता है, इसमें संदेह नहीं।। 3।।
सुमरणाद्दर्शनं तुभ्यं दास्येऽहं विषमे स्थिते।। स्वर्तव्याऽहं सदा देवाः परमात्मा सनातनः।। 80।।
उभयोः सुमरणादेव कार्यसिद्धिर संश्यम् ।।ब्रह्मोवाच।।इत्युक्त्वा विससर्जास्मान्द त्त्वा शक्तीः
सुसंस्कृतान् ।। 81।।
विष्णवेऽथ महालक्ष्मी महाकालीं शिवाय च।। महासरस्वतीं मह्यं
स्थानात्तस्माद्विसर्जिताः।।82।।
अनुवाद - संकट उपस्थित होने पर सुमरण से ही मैं तुमको दर्शन दूंगी, देवताओं! परमात्मा
सनातन देवकी शक्तिरूपसे मेरा सदा सुमरण करना।।80।।
दोनों के सुमरण से अवश्य कार्यसिद्धि
होगी, ब्रह्माजी बोले इस प्रकार संस्कार कर शक्ति देकर हमको विदा किया।।81।।
विष्णु के निमित्त
महालक्ष्मी, शिव के निमित्त महाकाली, और हमको महासरस्वती देकर विदा किया।।82।।
मम चैव शरीरं वै सूत्रामित्याभिधीयते।। स्थूलं शरीरं वक्ष्यामि ब्रह्मणः परमात्मनः।।83।।
अनुवाद - मेरा शरीर सूत्रारूप कहा जाता है, परमात्मा ब्रह्म का स्थूलशरीर कहाता है।।83।।