"पवित्र बाईबल में प्रभु मानव सदृश साकार का प्रमाण" - परमात्मा मानव सदृश शरीर में है
संत रामपाल जी महाराज
इसी का प्रमाण पवित्र बाईबल में तथा पवित्र र्कुआन शरीफ में भी है।
र्कुआन शरीफ में पवित्र बाईबल का भी ज्ञान है, इसलिए इन दोनों पवित्र सद्ग्रन्थों ने मिल-जुल कर प्रमाण किया है कि कौन तथा कैसा है सृष्टी रचनहार तथा उसका वास्तविक नाम क्या है?
अन्य प्राणियों की रचना करके 26. फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाऐं, जो सर्व प्राणियों को काबू रखेगा। 27. तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टी की।
29. प्रभु ने मनुष्यों के खाने के लिए जितने बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीज वाले फल होते हैं वे भोजन के लिए प्रदान किए हैं, माँस खाना नहीं कहा है।
परमेश्वर ने छः दिन में सर्व सृष्टी की उत्पत्ति की तथा सातवें दिन विश्राम किया।
पवित्र बाईबल ने सिद्ध कर दिया कि परमात्मा मानव सदृश शरीर में है, जिसने छः दिन में सर्व सृष्टी की रचना की तथा फिर विश्राम किया।
उत्पति विषय में लिखा है कि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। इससे सिद्ध है कि प्रभु भी मनुष्य जैसे शरीर युक्त है तथा छः दिन में सृष्टी रचना करके सातवें दिन तख्त पर जा विराजा।
"पवित्र बाईबल में अव्यक्त साकार प्रभु (काल) के विषय में वर्णन"
पूर्ण परमात्मा ने छः दिन में सृष्टी रचना कर के विश्राम किया। तत्पश्चात् अव्यक्त प्रभु (काल) ने बागडोर संभाल ली। हजरत आदम तथा हजरत हव्वा (जो श्री आदम जी की पत्नी थी) को कहा कि इस वाटिका में लगे हुए फलों को तुम खा सकते हो। लेकिन ये जो बीच वाले फल हैं इनको मत खाना, अगर खाओगे तो मर जाओगे। परमेश्वर ऐसा कह कर चला गया।
उसके बाद एक सर्प आया और कहा कि तुम ये बीच वाले फल क्यों नहीं खा रहे हो? हव्वा जी ने कहा कि भगवान (अल्लाह) ने हमें मना किया है कि अगर तुम इनको खाओगे तो मर जाओगे, इन्हें मत खाना। सर्प ने फिर कहा कि भगवान ने आपको बहकाया हुआ है। वह नहीं चाहता है कि तुम प्रभु के सदृश ज्ञानवान हो जाओ। यदि तुम इन फलों को खा लोगे तो तुम्हें अच्छे और बुरे का ज्ञान हो जाएगा। आपकी आँखों पर से वह पर्दा हट जाएगा जो अज्ञानता का प्रभु ने आपके ऊपर डाल रखा है। यह बात सर्प ने हव्वा को कही जो कि आदम की पत्नी थी। हव्वा ने अपने पति हजरत आदम से कहा कि हम ये फल खायेंगे और हमें भले-बुरे का ज्ञान हो जाएगा। ऐसा ही हुआ। उन्होंने वह फल खा लिया तो उनकी आँखें खुल गई तथा वह अंधेरा हट गया जो भगवान ने उनके ऊपर अज्ञानता का पर्दा डाल रखा था। जब उन्होंने देखा कि हम दोनों निवस्त्र हैं तो शर्म आई और अंजीर के पत्तों को तोड़ कर अपने पर्दो पर बांधा।
कुछ दिनों के बाद जब शाम के समय घूमने के लिए प्रभु आया तो पूछा कि तुम कहाँ हो? आदम जी तथा हव्वा जी ने कहा कि हम छुपे हुए है, क्योंकि हम निवस्त्र हैं। भगवान ने कहा कि क्या तुमने उस बीच वाले फल को खा लिया? आदम ने कहा कि हाँ जी और उसके खाने के बाद हमें महसूस हुआ कि हम निवस्त्र हैं। प्रभु ने पूछा कि तुम्हें किसने बताया कि ये फल खाओ। आदम ने कहा कि हमारे को सर्प ने बताया और हमने वह खा लिया। उसने मेरी पत्नी हव्वा को बहका दिया और हमने उसके बहकावे में आकर ये फल खा लिया।
21. फिर यहोवा प्रभु ने आदम तथा उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अंगरखे पहना दिए।
3:22. फिर यहोवा प्रभु ने (उत्पति अध्याय 3:22 तथा 17:1 तथा 18:1 से 5 तथा 16 से 23 तथा 26.29.32.33 में) कहा मनुष्य भले-बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। इसलिए ऐसा न हो कि यह जीवन के वृक्ष वाला फल भी तोड़ कर खा ले और सदा जीवित रहे। उत्पति ग्रन्थ के अध्याय 17 श्लोक 1 (17:1) में कहा है कि जब अब्राम निन्यानवे (99) वर्ष का हो गया तब यहोवा ने उसको दर्शन दे कर कहा ‘‘मैं सर्वशक्तिमान हुँ। मेरी उपस्थिति में चल और सिद्ध होता जा’’ फिर उत्पति ग्रन्थ के अध्याय 18 श्लोक 1 से 10 तथा अध्याय 19 श्लोक 1 से 25 में तीन प्रभुओं का प्रमाण है।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि आदम जी का प्रभु कह रहा है कि आदम को भले बुरे का ज्ञान होने से हम में से एक के समान हो गया है। इससे सिद्ध हुआ कि ऐसे प्रभु और भी हैं जब कि इसाई धर्म के श्रद्धालु कहते है परमात्मा एक है तथा यह भी प्रमाणित हुआ कि परमात्मा साकार है मनुष्य जैसा है।
उत्पति ग्रन्थ अध्याय 3 के श्लोक 23. व 24. इसलिए प्रभु ने आदम व उसकी पत्नी को अदन के उद्यान से निकाल दिया।
काल प्रभु ने उनको उस वाटिका से निकाल दिया और कहा कि अब तुम्हें यहाँ नहीं रहने दूँगा और तुझे अपना पेट भरने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ेगा और औरत को श्राप दिया कि तू हमेशा आदमी के पराधीन रहेगी।
{विशेष:- श्री मनु जी के पुत्र इक्ष्वाकु तथा इसी वंश में राजा नाभीराज हुए। राजा नाभीराज के पुत्र श्री ऋषभदेव जी हुए जो पवित्र जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर माने जाते हैं। यही श्री ऋषभदेव जी की पवित्रत्मा बाबा आदम हुए। जैन धर्म के सद्ग्रन्थ ‘‘आओ जैन धर्म को जाने‘‘ पृष्ठ 154 में लिखा है।} आदम व हव्वा के संयोग से दो पुत्र उत्पन्न हुए। एक का नाम काईन तथा दूसरे का नाम हाबिल रखा। काईन खेती करता था। हाबिल भेड़-बकरियाँ चराया करता था। काईन कुछ धुर्त था परन्तु हाबिल ईश्वर पर विश्वास करने वाला था। काईन ने अपनी फसल का कुछ अंश प्रभु को भंेट किया। प्रभु ने अस्वीकार कर दिया। फिर हाबिल ने अपने भेड़ के पहले मेमने को प्रभु को भेंट किया, प्रभु ने स्वीकार किया। {यदि बाबा आदम में प्रभु बोल रहा होता तो कहता कि बेटा हाबिल मैं तेरे से प्रसन्न हूँ। आप ने जो मैमना भेंट किया यह आप की प्रभु के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। यह आप ही ले जाईये और इसे बेच कर धर्म (भण्डारा) कीजिए और अपनी भेड़ों की ऊन उतार कर रोजी-रोटी चलाईये तथा प्रभु में विश्वास रखिये। यह बाबा आदम के शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके कोई प्रेत व पितर बोल रहा था तथा इसी प्रकार पवित्र बाईबल में माँस खाने का प्रावधान पित्तरों ने किसी नबी में बोल कर करवाया है।}
इस से काईन को द्वेष हुआ तथा अपने छोटे भाई को मार दिया। कुछ समय के बाद आदम व हव्वा से एक पुत्र हुआ उसका नाम सेत रखा। सेत को फिर पुत्र हुआ उसका नाम एनोस रखा। उस समय से लोग प्रभु का नाम लेने लगे।
विचार करें - जहाँ से पवित्र ईसाई व मुसलमान धर्म प्रथम पुरूष के वंश की शुरूआत हुई वहीं से मार-काट लोभ और लालच द्वेष परिपूर्ण है। आगे चलकर इसी परंपरा में ईसा मसीह जी का जन्म हुआ। इनकी पूज्य माता जी का नाम मरियम तथा पूज्य पिता जी का नाम यूसुफ था। परन्तु मरियम को गर्भ एक देवता से रहा था। इस पर यूसुफ ने आपत्ति की तथा मरियम को त्यागना चाहा तो स्वपन में (फरिश्ते) देवदूत ने ऐसा न करने को कहा तथा यूसुफ ने डर के मारे मरियम का त्याग न करके उसके साथ पति-पत्नी रूप में रहे। देवता से गर्भवती हुई मरियम ने ईसा को जन्म दिया। हजरत ईसा से पवित्र ईसाई धर्म की स्थापना हुई। ईसा मसीह के नियमों पर चलने वाले भक्त आत्मा ईसाई कहलाए तथा पवित्र ईसाई धर्म का उत्थान हुआ।
प्रमाण के लिए कुरान शरीफ में सूरः मर्यम-19 में तथा पवित्र बाईबल में मती रचित सुसमाचार मती=1:25 पृष्ठ नं. 1-2 पर।
हजरत ईसा जी को भी पूर्ण परमात्मा सत्यलोक से आकर मिले तथा एक परमेश्वर का मार्ग समझाया। इसके बाद ईसा जी एक ईश्वर की भक्ति समझाने लगे। लोगों ने बहुत विरोध किया। फिर भी वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। परन्तु बीच-बीच में ब्रह्म(काल/ज्योति निरंजन) के फरिश्ते हजरत ईसा जी को विचलित करते रहे तथा वास्तविक ज्ञान को दूर रखा।
हजरत यीशु का जन्म तथा मृत्यु व जो जो भी चमत्कार किए वे पहले ब्रह्म(ज्योति निरंजन) के द्वारा निर्धारित थे। यह प्रमाण पवित्र बाईबल में है कि एक व्यक्ति जन्म से अंधा था। वह हजरत यीशु मसीह के पास आया। हजरत जी के आशीर्वाद से उस व्यक्ति की आँखें ठीक हो गई। शिष्यों ने पूछा हे मसीह जी इस व्यक्ति ने या इसके माता-पिता ने कौन-सा ऐसा पाप किया था जिस कारण से यह अंधा हुआ तथा माता-पिता को अंधा पुत्र प्राप्त हुआ। यीशु जी ने कहा कि इसका कोई पाप नहीं है जिसके कारण यह अंधा हुआ है तथा न ही इसके माता-पिता का कोई पाप है जिस कारण उन्हें अंधा पुत्र प्राप्त हुआ। यह तो इसलिए हुआ है कि प्रभु की महिमा प्रकट करनी है। भावार्थ यह है कि यदि पाप होता तो हजरत यीशु आँखे ठीक नहीं कर सकते थे। यह सब काल ज्योति निरंजन (ब्रह्म) का सुनियोजित जाल है। जिस कारण उसके द्वारा भेजे अवतारों की महिमा बन जाए तथा आस पास के सभी प्राणी उस पर आसक्त होकर उसके द्वारा बताई ब्रह्म साधना पर अटल हो जाऐं। जब परमेश्वर का संदेशवाहक आए तो कोई भी विश्वास न करे। जैसे हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीडि़त व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पित्तर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे दूत के पास भेजकर प्रेत को भगा देता है। उसके अवतार की महिमा बन जाती है। या कोई साधक पहले का भक्ति युक्त होता है। उससे भी ऐसे चमत्कार उसी की कमाई से करवा देता है तथा उस साधक की महिमा करवा कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर नरक में डाल देता है।
इसी तरह का उदाहरण पवित्र बाईबल ‘शमूएल‘ नामक अध्याय 16:14-23 में है कि शाऊल नामक व्यक्ति को एक प्रेत दुःखी करता था। उसके लिए बालक दाऊद को बुलाया जिससे उसको कुछ राहत मिलती थी। क्योंकि हजरत दाऊद भी ज्योति निरंजन का भेजा हुआ पूर्व शक्ति युक्त साधक पूर्व की भक्ति कमाई वाला था। जिसको ‘जबूर‘ नामक किताब ज्योति निरंजन/ब्रह्म ने बड़ा होने पर उतारी।
हजरत ईसा मसीह की मृत्यु 30 वर्ष की आयु में हुई जो पूर्व ही निर्धारित थी। स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरी मृत्यु निकट है तथा तुम (मेरे बारह शिष्यों) में से ही एक मुझे विरोधियों को पकड़वाएगा। उसी रात्री में सर्व शिष्यों सहित ईसा जी एक पर्वत पर चले गए। वहाँ उनका दिल घबराने लगा। अपने शिष्यों से कहा कि आप जागते रहना। मेरा दिल घबरा रहा है। मेरा जी निकला जा रहा है। मुझे सहयोग देना। ऐसा कह कर कुछ दूरी पर जाकर मुंह के बल पृथ्वी पर गिरकर प्रार्थना की (38,39), वापिस चेलों के पास लौटे तो वे सो रहे थे। यीशु ने कहा क्या तुम मेरे साथ एक पल भी नहीं जाग सकते। जागते रहो, प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में फेल न हो जाओ। मेरी आत्मा तो मरने को तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है। इसी प्रकार यीशु मसीह ने तीन बार कुछ दूर जाकर प्रार्थना की तथा फिर वापिस आए तो सभी शिष्यांे को तीनों बार सोते पाया। ईसा मसीह के प्राण जाने को थे, परन्तु चेले राम मस्ती में सोए पड़े थे। गुरु जी की आपत्ति का कोई गम नहीं।
तीसरी बार भी सोए पाया तब कहा मेरा समय आ गया है, तुम अब भी सोए पड़े हो। इतने में तलवार तथा लाठी लेकर बहुत बड़ी भीड़ आई तथा उनके साथ एक ईसा मसीह का खास यहूंदा इकसरौती नामक शिष्य था, जिसने तीस रूपये के लालच में अपने गुरु जी को विरोधियों के हवाले कर दिया।(मत्ती 26:24-55 पृष्ठ 42-44)
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुण्यात्मा ईसा मसीह जी को केवल अपना पूर्व का निर्धारित जीवन काल प्राप्त हुआ जो उनके विषय में पहले ही पूर्व धर्म शास्त्रों में लिखा था। "मत्ती रचित समाचार" पष्ठ 1 पर लिखा है कि याकुब का पुत्र युसूफ था। युसूफ ही मरियम का पति था। मरियम को एक फरिश्ते से गर्भ रहा था। तब हजरत ईसा जी का जन्म हुआ समाज की दृष्टि में ईसा जी के पिता युसूफ थे। (मत्ती 1:1-18)
तीस (30) वर्ष की आयु में ईसा मसीह जी को शुक्रवार के दिन सलीब मौत (दीवार) के साथ एक आकार के लकड़ के ऊपर ईसा को खड़ा करके हाथों व पैरों में मेख (मोटी कील) गाड़ दी। जिस कारण अति पीड़ा से ईसा जी की मृत्यु हुई। तीसरे दिन रविवार को ईसा जी फिर से दिखाई देने लगे। 40 दिन (चालीस) कई जगह अपने शिष्यों को दिखाई दिए। जिस कारण भक्तों में परमात्मा के प्रति आस्था दृढ़ हुई। वास्तव में पूर्ण परमात्मा ने ही ईसा जी के रूप में प्रकट होकर प्रभु भक्ति को जीवित रखा था। काल तो चाहता है यह संसार नास्तिक हो जाए। परन्तु पूर्ण परमात्मा ने यह भक्ति वर्तमान समय तक जीवित रखनी थी। अब यह पूर्ण रूप से फैलेगी। उस समय के शासक(गवर्नर) पिलातुस को पता था कि ईसा जी निर्दोष हैं परन्तु फरीसियों अर्थात् मूसा के अनुयाईयों के दबाव में आकर सजा सुना दी थी।
"हजरत ईसा मसीह में देव तथा पित्तर प्रवेश करके चमत्कार दिखाने का प्रमाण"
एक स्थान पर हजरत ईसा जी ने कहा है कि मैं याकुब (जो मरियम के पति का भी पिता था) से भी पहले था। संसार की दृष्टि में ईसा मसीह का दादा जी याकुब था। ईसा जी नहीं कहते कि मैं याकुब से भी पहले था। इससे सिद्ध है कि ईसा जी में कोई अन्य फरिश्ता बोल रहा था जो प्रेतवत प्रवेश कर जाता था, भविष्यवाणी कर जाता था।
एक और उदाहरण ग्रन्थ बाईबल अध्याय 2 कुरिन्थियों 2:12-17 पृष्ठ 259-260 में स्पष्ट लिखा है कि एक आत्मा किसी में प्रवेश करके बोल रही है। कहा है कि (14) परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हम को जय उत्सव में लिए फिरता है और अपने ज्ञान की सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है। 17. हम उन लोगों में से नहीं हैं जो परमेश्वर के वचनों में मिलावट करते हैं। हम तो मन की सच्चाई और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर की उपस्थिति जान कर मसीह में बोलते हैं।
उपरोक्त विवरण पवित्र बाईबल के अध्याय कुरिन्थियों 2:12 से 18 पृष्ठ 259-260 से ज्यों का त्यों लिखा है। इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं 1. मसीहा (नबी अर्थात् अवतार) में कोई अन्य फरिश्ता बोलकर किताबें लिखाता है। जो प्रभु का भेजा हुआ होता है वह तो प्रभु का संदेश ज्यों का त्यों बिना परिवर्तन किए सुनाता है। 2. दूसरी बात यह भी सिद्ध हुई कि मसीह (नबी) में अन्य आत्मा भी बोलते हैं जो अपनी तरफ से मिलावट करके भी बोलते हैं। यही कारण है कि र्कुआन शरीफ (मजीद) तथा बाईबल आदि में माँस खाने का आदेश अन्य आत्माओं का है, प्रभु का नहीं है।
इन्हीं प्रेतों तथा पित्तरों व फरिश्तों तथा ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ने हजरत मुहम्मद जी में प्रवेश करके काल (ब्रह्म/ज्योति निरंजन) तक का अटकल युक्त ज्ञान प्रवेश करके भ्रमित किया हुआ है। न तो र्कुआन शरीफ (मजीद) तथा तौरत, इंजिल आदि का ज्ञान पूर्ण है, न भक्ति विधि पूर्ण है, क्योंकि उपरोक्त सर्व पवित्र पुस्तकों का ज्ञान दाता वही है जो र्कुआन शरीफ (मजीद) का है। जो सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 58 व 59 में कह रहा है कि सर्व सृष्टी रचनहार, सर्व पापों का नाश करने वाला, सर्व का पालन कर्ता कबीर दयालु प्रभु है। उपरोक्त सर्व पुस्तकों तथा र्कुआन शरीफ व मजीद सहित का ज्ञान दाता प्रभु अपनी अल्पज्ञता जता रहा है कि उस कबीर प्रभु के वास्तविक ज्ञान तथा भक्ति मार्ग को किसी बाखबर (तत्वदर्शी संत) से पूछो। इससे सिद्ध है कि र्कुआन शरीफ व अन्य उपरोक्त पुस्तकों में ज्ञान पूर्ण नहीं है।
इसी प्रकार पवित्र हिन्दू धर्म के माने जाने वाले चारों पवित्र वेद तथा पवित्र गीता का ज्ञान दाता ब्रह्म(काल/ज्योति निरंजन) भी कह रहा है कि मेरी भक्ति तथा ब्रह्मा, विष्णु व शिव की साधना व्यर्थ है। इसलिए उस परमेश्वर की शरण में जा जिसकी कृपा से ही तू परम शांति तथा सनातन परम धाम को प्राप्त होगा। उस परमात्मा की भक्ति विधि तथा पूर्ण ज्ञान के विषय में किसी तत्वदर्शी संत की खोज कर, फिर जैसे वह तत्वदृष्टा संत साधना बताऐ उसी प्रकार अनन्य मन से कर।
फिर गीता ज्ञान दाता प्रभु ने कहा कि मैं भी उसी की शरण में हूँ। (प्रमाण यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 10, 13 तथा 17 तथा अथर्ववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मंत्र 1 से 7 तथा गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15, 18, 20 से 23 में, गीता अध्याय 4 श्लोक 34 व अध्याय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15 श्लोक 4-17 में)।
हजरत आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा तथा अन्य प्राणियों व सर्व ब्रह्मण्डों की उत्पत्ति करके र्कुआन व बाईबल बोलने वाले प्रभु को सौंप गया। बाईबल के उत्पत्ति ग्रंथ से भी सिद्ध होता है कि परमात्मा मनुष्य जैसा है। क्योंकि प्रभु ने मनुष्य को अपने जैसा बनाया तथा सात दिन के बाद का वर्णन र्कुआन शरीफ व बाईबल ज्ञान दाता(काल/ज्योति निरंजन) की लीला का है। पवित्र बाईबल में लिखा है कि ‘फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा, मनुष्य भले-बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। इसलिए अब ऐसा न हो कि वह हाथ बढ़ा कर जीवन के वृक्ष का फल भी तोड़ कर खा ले और सदा जीवित रहे। परमेश्वर ने उसे अदन के उ़द्यान सेृ निकाल दिया।
उपरोक्त विवरण से यह भी सिद्ध होता है कि जो आदम का प्रभु है ऐसा कोई और भी है तथा साकार है। इसीलिए तो कहा है कि मनुष्य जीवन फल को खाकर हम में से एक के समान हो गया है। क्योंकि बाईबल के उत्पत्ति ग्रन्थ में ही लिखा है कि आदम ने भले-बुरे के ज्ञान वाला फल तोड़ कर खा लिया तो उसे पता चला वह नंगा है। यहोवा परमेश्वर टहलते हुए आ गया। उसने आदम को पुकारा तू कहाँ है? तब आदम ने कहा मैं तेरी आवाज सुनकर छुप गया हूँ, क्योंकि मैं नंगा हूँ। फिर परमेश्वर ने आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा के वस्त्र बनवाए।
विचार करें उपरोक्त विवरण स्वयं सिद्ध कर रहा है कि पूर्ण परमात्मा भी सशरीर मनुष्य जैसे आकार का है तथा अन्य प्रभु भी मनुष्य जैसे आकार के हैं, जिसे पवित्र ईसाई तथा मुसलमान धर्म निराकार मानता है तथा प्रभु एक से अधिक भी हैं।
क्योंकि काल ब्रह्म स्वयं सामने नहीं आता, उसने अपने तीनों पुत्रों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी, तमगुण शिव जी) के द्वारा एक ब्रह्मण्ड का कार्य चला रखा है। हजरत आदम जी भगवान ब्रह्मा के अवतार हैं। हजरत आदम को श्री ब्रह्मा जी ने बहका कर रखा था, उसी ने उसको वहाँ से निकाला था। इसीलिए कहा है कि भले बुरे के ज्ञान वाला फल खाकर आदम हम में से एक के समान हो गया है। क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों देव हैं, हजरत ईसा के अवतार धारण करने के विषय में पवित्र बाईबल में लिखा है कि प्रभु ईश्वर ने पृथ्वी पर बढ़ रहे दुराचार के अन्त के लिए अपने पुत्र को भेजा था, क्योंकि हजरत ईसा जी भगवान विष्णु के अवतार हैं। विष्णु लोक से कोई देव आत्मा का जन्म मरयम के गर्भ से फरिस्ते (देव) द्वारा हुआ था।
"मामरे पर तीनों देवताओं के देखने का प्रमाण"
इसमें लिखा है कि अब्राहम मम्रे (मामरे) के बांजों के बीच कड़ी धूप के समय तम्बू के द्वार पर बैठा था , तब यहोवा ने उसे दर्शन दिया। और उसने आँख उठा कर देखा तो तीन पुरुष उसके सामने खड़े हैं। उन्होंने अब्राहम की प्रार्थना पर खाना खाया तथा वृद्ध अवस्था में पुत्र होने का आशीर्वाद देकर चले गए तथा जाते समय कहा कि हम सदोम आदि नगरों का नाश करने जा रहे हैं। वहाँ के लोग अधर्मी हो गए हैं। अब्राहम ने पूछा क्या आप अधर्मियों के साथ धर्मियों को भी मार डालोगे। प्रभु ने कहा यदि 100 व्यक्ति भी धर्मी होंगे तो भी हम उस नगरी का नाश नहीं करेंगे। ‘‘सदोम आदि नगरों का विनाश‘‘ नामक विषय में लिखा है कि उनमें से दो दूत ‘‘सदोम‘‘ में पहुँचे।सदोम में लूत (लोट) नामक व्यक्ति रहता था। उस गाँव के व्यक्ति बहुत निकम्मे थे। लूत (लोट) ने उन्हें आदर पूर्वक रोका। गाँव वालों ने उन फरिश्तों को आम व्यक्ति जान कर उनके साथ कुकर्म (नर से नर बलात्कार करना) करने के लिए बाहर निकलने को कहा। परन्तु लूत(लोट) ने कहा यह मेरे अतिथि हैं, मैं इन्हें आपको नहीं दे सकता। आप मेरी लड़की को ले लो। इस बात से प्रसन्न फरिश्तों ने सभी निकम्मे व्यक्तियों को अंधा कर दिया तथा लूत(लोट) को उसके परिवार सहित उस गाँव से निकाल कर पूरे गाँव को नष्ट कर दिया। इससे सिद्ध हुआ कि तीनों देवता हैं, जो ब्रह्म के आदेश से सर्व को किए कर्म का फल देते हैं।
उपरोक्त विवरण से सिद्ध हुआ कि तीन देवता हैं। उनमें से कभी दो कभी एक अपने-अपने साधक के पास जाते हैं। यदि कोई तीनों का साधक है तो तीनों भी एक साथ जाते हैं, यदि कोई दो का साधक है तो दो भी दर्शन देते हैं। उपरोक्त प्रमाण से भी सिद्ध होता है कि तीनों देवता (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) ही अपने पिता ब्रह्म के आदेशानुसार एक ब्रह्मण्ड में सर्व कार्य करते हैं। भक्ति भाव के व्यक्तियों की कर्म अनुसार रक्षा तथा दुष्कर्म करने वालों का कर्म अनुसार नाश करते हैं। ब्रह्म(अव्यक्त कभी सामने दर्शन न देने वाला) प्रभु उपरोक्त तीनों फरिश्तों (देवताओं) द्वारा अपना आदेश नबियों के पास भिजवाता है तथा आकाशवाणी द्वारा या प्रेतवत प्रवेश करके स्वयं भी आदेश देता है। फरिश्ते तो उसका ज्यों का त्यों आदेश सुनाते हैं। आदेश में कोई परिवर्तन नहीं करते। इससे स्पष्ट हुआ कि पवित्र बाईबल तथा पवित्र र्कुआन सहित चारों कतेबों का ज्ञान दाता प्रभु किसी अन्य कबीर नामक प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है।
विशेष:- र्कुआन शरीफ(मजीद) शूरः बकरः 2(87) आयत 21 से 33 तक उस पूर्ण परमात्मा की महिमा के विषय में वर्णन है तथा आयत 34 से अंत तक अपनी महिमा बताई है तथा अपने ज्ञान अनुसार पूजा विधि बताई है। यह भी स्पष्ट किया है कि मैंने (र्कुआन ज्ञान दाता ने) आदम तथा उसकी पत्नी हव्वा को स्वर्ग की वाटिका में ठहराया तथा उनको बीच वाले वृक्षों के फलृ छोड़ कर शेष वृक्षों के फल खाने को कहा। परन्तु उन्होंने सर्प के बहकाने से बीच वाले वृक्षों के फल खा लिये। मैंने उनको जमीन पर दुःखी होने के लिये भेज दिया। (शूरः बकरः 2(87) आयत 35 से 39 तक।)
र्कुआन ज्ञान दाता अल्लाह ने स्पष्ट किया है कि मैंने ही हजरत मुसा को ‘‘तौरत‘‘ किताब उतारी थी तथा मूसा के लिए पत्थर से पानी के झरने निकाले थे(आयत 41, 53, 60)। हम ही मुसा के बाद एक के बाद दूसरा पैगम्बर भेजते रहे तथा ईसा बिन मरियम को खुली निशानियाँ बख्शी तथा रूहुल कुदस(यानि जिब्रील) से उनको मदद दी। (आयत 87)
सार विचार:- उपरोक्त पवित्र र्कुआन शरीफ के विवरण से स्पष्ट हुआ कि बाबा आदम से लेकर हजरत ईसा, हजरत अब्राहम, हजरत दाऊद, हजरत मुसा, हजरत मुहम्मद साहेब तक को पैगम्बर बना कर भेजने वाला खुदा(अल्लाह/प्रभु) एक ही है। उसी ने र्कुआन शरीफ अर्थात् मजीद का ज्ञान वह्य के द्वारा स्वयं प्रेतवत प्रवेश करके या आकाशवाणी करके कहा है या फरिश्तों के माध्यम से हजरत मुहम्मद तक ज्यांे का त्यों पहुँचाया है। वही खुदा सूरत फुर्कानि 25 आयत 52 से 58 तथा 59 में कह रहा है कि हे पैगम्बर (हजरत मुहम्मद) पूर्ण परमात्मा कबीर है, परन्तु काफिर लोग मेरी इस बात पर विश्वास नहीं करते। आप उनकी कही बातों को मत मानना मेरे द्वारा दिया यह कुरान शरीफ वाले ज्ञान की दलीलों पर विश्वास करना की कबीर अल्लाह उसी को अल्लाह अक्बरू कहते हैं। इस ज्ञान के समर्थन में काफिरों के साथ संघर्ष करना भावार्थ है कि काफिर लोग कहते हैं कि कबीर अल्लाह नहीं है। आप (हजरत मुहम्मद) कहना कि कबीर अल्लाह है। लड़ना नहीं है। उनकी बातों में नहीं आना हैं (आयत 52) वह (कबीर अल्लाह) वही है जिसने जमीन व आसमान के बीच सर्व रचा, दिन-रात बनाए, परिवार, रिश्तेदार, आदि इन्सान के लिए बनाए तथा जमीन में मीठा पानी आदि पदार्थ प्रदान किए।(आयत 53 से 55) हे पैगम्बर(हजरत मुहम्मद)! मैंने जो कुरान की आयतों द्वारा ज्ञान दिया है उसमें जो कबीर है वह पूर्ण परमात्मा है उस पर विश्वास रखना। काफिर लोग उस कबीर को परमात्मा अल्लाह नहीं मानते। उनकी बातें मत मानना, उनके साथ ज्ञान का संघर्ष करना लड़ना नहीं परन्तु उनकी बातों को स्वीकार नहीं करना। (आयत 52) वह कबीर परमात्मा वही है जिसने सर्व सृष्टी की रचना की है। जिसने परिवार के जन उत्पन्न किए नाते-रिश्ते बनाए। सर्व का पालन करता है। (आयत 53से 55) हमने तुम्हें खुशखबरी सुनाने(सिर्फ अजाब से) डराने के लिये भेजा है। (आयत 56) और (ऐ पैगम्बर) उस जिंदा पर भरोसा रखो जो कभी मरने वाला नहीं है। {क्योंकि पूर्ण परमात्मा (अल्लाह कबीर) एक जिन्दा महात्मा की वेशभूषा में हजरत मुहम्मद जी को मिला था तथा सतलोक आदि को दिखाया था, परन्तु हजरत मुहम्मद जी ने पूर्ण परमात्मा की बात पर विश्वास नहीं किया था। उसी का वर्णन है।} तारीफ के साथ उसकी पाकी ब्यान करते रहो और वह कबीर अल्लाह अपने बंदो के गुनाहों से खबरदार है तथा वही (ईवादही खबीरा/कबीरा) कबीर परमात्मा अर्थात् अल्लाहू अकबर पूजा के योग्य है। (58) वह कबीर अल्लाह वही है जिसने छः दिन में सर्व ब्रह्मण्डों को रचा तथा सातवें दिन तख्त पर विराजा। वास्तव में वह अल्लाह कबीर रहमान(क्षमा शील) है। उसके विषय में मैं (र्कुआन शरीफ/मजीद का ज्ञान दाता) नहीं जानता। उसकी खबर अर्थात् पूर्ण ज्ञान व भक्ति की विधि किसी बाखबर(तत्वदर्शी संत) से पूछो। (आयत 59)
उपरोक्त विवरण से यह भी सिद्ध हुआ कि प्रभु एक नहीं अनेक हैं तथा तीनों देवता (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी) ही तीनों लोकों के प्राणियों को संस्कारवश लाभ व हानि तथा उत्पत्ति, स्थिति तथा संहार के कारण हैं तथा ब्रह्म(काल) सर्व को धोखा देकर रखता है। पूर्ण परमात्मा कबीर ही सर्व सुखदायक, सर्व के पूजा के योग्य तथा पूर्ण मोक्ष दायक है।
पूज्य कबीर परमेश्वर बता रहे हैं कि मैंने उस मुल्ला जी से कहा कि जिस बाखबर(तत्वदृष्टा) संत के लिये आपका अल्लाह संकेत कर रहा है। उस तत्वदृष्टा संत द्वारा दिया ज्ञान ही पूर्ण मोक्ष दायक है। वह वास्तविक भक्ति मार्ग न तो हजरत मुहम्मद जी को प्राप्त हुआ, न आप मुल्ला, काजियों व पीरों को। इसलिए आज तक जो भी साधना आप कर रहे हो वह अधूरी है। केवल ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का फैलाया भ्रम जाल है। यह नहीं चाहता कि साधक मेरे जाल से निकल जाए। पूज्य कबीर परमेश्वर ने बताया वह बाखबर (अर्थात् तत्वदर्शी संत) मैं हूँ। आप मेरे से उपदेश लो तथा यह तत्व ज्ञान जो मैं आपको बताऊंगा अन्य भक्ति चाहने वालों को भी समझाओ। यह तो काल है जिसे वेदों में ब्रह्म(क्षर पुरुष/ज्योति निरंजन) कहा जाता है। पूर्ण परमात्मा कोई और है जिसे वेदों में कविर्देव कहा है तथा र्कुआन शरीफ(मजीद) में कबीरन्, कबीरा, खबीरन्, खबीरा आदि कहा है तथा जिसे हजरत मुहम्मद जी ने अल्लाहु अकबर कहा है। वह कबीर अल्लाह मैं हूँ। आप सर्व मेरी आत्मा हो। आपको काल(ब्रह्म) ने भ्रमित किया है।
बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर ने आगे बताया - यह वार्ता सुनकर वह मुल्ला मुझसे अति नाराज हो गया तथा आगे से उसकी कथा में न आने को कहा। पूज्य कबीर परमेश्वर से उपरोक्त विवरण जानकर बादशाह सिंकदर लौधी ने अपने धार्मिक गुरू शेखतकी से कहा ‘‘पीर जी, क्या र्कुआन शरीफ में महाराज कबीर साहेब जी द्वारा बताया विवरण है?’’ शेखतकी ने र्कुआन शरीफ में सूरत फुरकानी 25 आयत 52 से 59 को ध्यान से पढ़ा तथा सत्य को जाना परन्तु मान वश कह दिया कि कबीर जी तो झूठा है। यह क्या जाने पवित्र र्कुआन शरीफ के गूढ रहस्य को। यह कहकर अति नाराजगी व्यक्त करता हुआ उठ कर अपने कमरे में चला गया। बादशाह सिकंदर लौधी भी र्कुआन शरीफ को सुना करता था तो उसे याद आया कि ऐसा वर्णन अवश्य आता है। फिर भी भक्ति मार्ग तथा अरबी भाषा का ज्ञान न होने के कारण पूर्ण विश्वास नहीं हुआ। परन्तु हजरत मुहम्मद जी के जीवन चरित्र से पूर्ण परिचित था। उससे बहुत प्रभावित हुआ तथा कहा कि सच-मुच हजरत मुहम्मद जी के जीवन में कष्ट ही कष्ट रहे हैं।
परमेश्वर ने छः दिन में सृष्टी रची तथा सातवें दिन विश्राम किया, प्रभु ने पाँच दिन तक अन्य रचना की, फिर छटवें दिन ईश्वर ने कहा कि हम मनुष्य को अपना ही स्वरूप बनायेंगे।
फिर परमेश्वर ने मनुष्य को अपना ही स्वरूप बनाया, नर-नारी करके उसकी सृष्टी की। फिर ईश्वर ने मनुष्यों के खाने के लिए केवल फलदार वृक्ष तथा बीजदार पौधे दिए। जो तुम्हारे भोजन के लिए हैं। छः दिन में पूरा कार्य करके परमेश्वर ऊपर तख्त पर जा विराजा अर्थात् विश्राम किया।
ईश्वर ने प्रथम आदम बनाया फिर उसकी पसली निकाल कर नारी हव्वा बनाई तथा दोनों को एक वाटिका में छोड़कर तख्त पर जा बैठे। फिर पृष्ठ नं. ृ 8 पर लिखा है कि ईश्वर ने मनुष्य जाति के खाने के लिए फलदार पेड़ तथा बीजदार पौधे बनाए और अन्य प्राणियों के लिए घास व पौधे बनाए।
भगवान ने मनुष्य को अपना प्रति रूप बनाया। इससे स्वसिद्ध है कि भगवान (अल्लाह) आकार में है और वह मनुष्य जैसा है। वह पूर्ण परमात्मा तो यहाँ तक रचना छः दिन में करक सातवंे दिन अपने सत्यलोक में तख्त पर विराजमान हो गया। इसके बाद प्रभु काल अर्थात् ज्योति निरंजन की भूल भुलइयाँ प्रारम्भ हो गई।
प्रभु काल ने हजरत आदम तथा हजरत हव्वा (जो श्री आदम जी की पत्नी थी) को कहा कि इस वाटिका में लगे हुए फलों को तुम खा सकते हो। लेकिन ये जो बीच वाले फल हैं इनको मत खाना, अगर खाओगे तो मर जाओगे। परमेश्वर ऐसा कह कर चला गया।
उसके बाद एक सर्प आया और कहा कि तुम ये बीच वाले फल क्यों नहीं खा रहे हो? हव्वा जी ने कहा कि भगवान (अल्लाह) ने हमें मना किया है कि अगर तुम इनको खाओगे तो मर जाओगे, इन्हें मत खाना। सर्प ने फिर कहा कि भगवान ने आपको बहकाया हुआ है। वह नहीं चाहता है कि तुम प्रभु के सदृश ज्ञानवान हो जाओ। यदि तुम इन फलों को खा लोगे तो तुम्हें अच्छे और बुरे का ज्ञान हो जाएगा। आपकी आँखों पर से अज्ञानता का पर्दा हट जाएगा जो प्रभु ने आपके ऊपर डाल रखा है। यह बात सर्प ने हव्वा को कही जो कि आदम की पत्नी थी। हव्वा ने अपने पति हजरत आदम से कहा कि हम ये फल खायेंगे तो हमें भले-बुरे का ज्ञान हो जाएगा। ऐसा ही हुआ। उन्होंने वह फल खा लिया तो उनकी आँखें खुल गई तथा वह अंधेरा हट गया जो भगवान ने उनके ऊपर अज्ञानता का पर्दा डाल रखा था। जब उन्होंने देखा कि हम दोनों निवस्त्र हैं तो शर्म आई और अंजीर के पत्तों को तोड़ कर बांधा।
कुछ दिनों के बाद जब शाम के समय घूमने के लिए प्रभु आया तो पूछा कि तुम कहाँ हो? आदम जी तथा हव्वा जी ने कहा कि हम छुपे हुए है, क्योंकि हम निवस्त्र हैं। भगवान ने कहा कि क्या तुमने उस बीच वाले फल को खा लिया? आदम ने कहा कि हाँ जी और उसके खाने के बाद हमें महसूस हुआ कि हम निवस्त्र हैं। प्रभु ने पूछा कि तुम्हें किसने बताया कि ये फल खाओ। आदम ने कहा कि हमारे को सर्प ने बताया और हमने वह खा लिया। उसने मेरी पत्नी हव्वा को बहका दिया और हमने उसके बहकावे में आकर ये फल खा लिया।
21. फिर यहोवा प्रभु ने आदम तथा उसकी पत्नी के लिए चमड़े के अंगरखे पहना दिए।
22. फिर यहोवा प्रभु ने कहा मनुष्य भले-बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है। इसलिए ऐसा न हो कि यह जीवन के वृक्ष वाला फल भी तोड़ कर खा ले और सदा जीवित रहे।
23. व 24. इसलिए प्रभु ने आदम व उसकी पत्नी को अदन के उद्यान से निकाल दिया। काल प्रभु ने उनको उस वाटिका से निकाल दिया और कहा कि अब तुम्हें यहाँ नहीं रहने दूँगा और तुझे अपना पेट भरने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ेगा और औरत को श्राप दिया कि तू हमेशा आदमी के पराधीन रहेगी।
{विशेष:- श्री मनु जी के पुत्र इक्ष्वाकु हुए तथा इसी वंश में राजा नाभीराज हुए। राजा नाभीराज के पुत्र श्री ऋषभदेव जी हुए जो पवित्र जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर माने जाते हैं। यही श्री ऋषभदेव जी का जीवात्मा ही बाबा आदम हुए। जैन धर्म की पुस्तक ‘‘आओ जैन धर्म को जाने‘‘ पृष्ठ 154 पर लिखा है।}
बाबा आदम व उनकी पत्नी हव्वा के संयोग से दो पुत्र उत्पन्न हुए। एक का नाम काईन तथा दूसरे का नाम हाबिल रखा। काईन खेती करता था। हाबिल भेड़-बकरियाँ चराया करता था। काईन कुछ धूर्त था परन्तु हाबिल ईश्वर पर विश्वास करने वाला था। काईन ने अपनी फसल का कुछ अंश प्रभु को भंेट किया। प्रभु ने अस्वीकार कर दिया। फिर हाबिल ने अपने भेड़ के पहले मैमने को प्रभु को भेंट किया, प्रभु ने स्वीकार किया। {यदि बाबा आदम में प्रभु बोल रहा होता तो कहता कि बेटा हाबिल मैं तेरे से प्रसन्न हूँ। आप ने जो मैमना भेंट किया यह आप की प्रभु के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। यह आप ही ले जाईये और इसे बेच कर धर्म (भण्डारा) कीजिए और अपनी भेड़ों की ऊन उतार कर रोजी-रोटी चलाईये तथा प्रभु में विश्वास रखिये। यह बाबा आदम के शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके पवित्र बाईबल में माँस खाने का प्रावधान पित्तरों ने किसी नबी में बोल कर करवाया है।}
इस से काईन को द्वेष हुआ तथा अपने छोटे भाई को मार दिया। कुछ समय के बाद आदम व हव्वा से एक पुत्र हुआ उसका नाम सेत रखा। सेत को फिर पुत्र हुआ उसका नाम एनोस रखा। उस समय से लोग प्रभु का नाम लेने लगे।
अब यहाँ पर देखना होगा कि जहाँ से पवित्र ईसाई व मुसलमान धर्म की शुरूआत हुई वहीं से मार-काट लोभ और लालच द्वेष परिपूर्ण है। आगे चलकर इसी परंपरा में ईसा मसीह जी का जन्म हुआ। इनकी पूज्य माता जी का नाम मरियम तथा पूज्य पिता जी का नाम यूसुफ था। परन्तु कुँवारी मरियम को गर्भ एक देवता से रहा था। इस पर यूसुफ ने आपत्ति की तथा मरियम को त्यागना चाहा तो स्वपन में (फरिश्ते) देवदूत ने ऐसा न करने को कहा तथा यूसुफ ने डर के मारे मरियम का त्याग न करके उसके साथ पति-पत्नी रूप में रहे। देवता से गर्भवती हुई मरियम ने हजरत ईसा को जन्म दिया। हजरत ईसा से पवित्र ईसाई धर्म की स्थापना हुई। ईसा मसीह के नियमों पर चलने वाले भक्त आत्मा ईसाई कहलाए तथा पवित्र ईसाई धर्म का उत्थान हुआ।
प्रमाण के लिए कुरान शरीफ में सूरः मर्यम-19 में तथा पवित्र बाईबल में मती रचित सुसमाचार मती=1ः25 पृष्ठ नं. ृ 1-2 पर।
हजरत ईसा जी को भी पूर्ण परमात्मा सत्यलोक से आकर मिले तथा एक परमेश्वर का मार्ग समझाया। इसके बाद ईसा जी एक ईश्वर की भक्ति समझाने लगे। लोगों ने बहुत विरोध किया। फिर भी वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। परन्तु बीच-बीच में ब्रह्म(काल/ज्योति निरंजन) के फरिश्ते हजरत ईसा जी को विचलित करते रहे तथा वास्तविक ज्ञान को दूर रखा।
हजरत यीशु का जन्म तथा मृत्यु व जो जो भी चमत्कार किए वे पहले ब्रह्म(ज्योति निरंजन) ृ के द्वारा निर्धारित थे। यह प्रमाण पवित्र बाईबल में यूहन्ना ग्रन्थ अध्याय 9 श्लोक 1 से 34 में 0है कि एक व्यक्ति जन्म से अंधा था। वह हजरत यीशु मसीह के पास आया। तथा हजरत यीशु जी के आशीर्वाद से स्वस्थ हो गया उसे आँखों से दिखाई देने लगा। शिष्यों ने पूछा हे मसीह जी इस व्यक्ति ने या इसके माता-पिता ने कौन-सा ऐसा पाप किया था जिस कारण से यह अंधा हुआ तथा माता-पिता को अंधा पुत्र प्राप्त हुआ। यीशु जी ने कहा कि इसका कोई पाप नहीं है जिसके कारण यह अंधा हुआ है तथा न ही इसके माता-पिता का कोई पाप है जिस कारण उन्हें अंधा पुत्र प्राप्त हुआ। यह तो इसलिए हुआ है कि प्रभु की महिमा प्रकट करनी है। भावार्थ यह है कि यदि पाप होता तो हजरत यीशु आँखे ठीक नहीं कर सकते थे। तथा काल रूपी ब्रह्म ने यीशु जी की महिमा बनाने के लिए अपनी शक्ति से किसी प्रेत द्वारा अन्धा करा रखा था। जो यीशु जी के पास आते ही निकल गया और व्यक्ति को दिखाई देने लगा था। यह सर्व काल ज्योति निरंजन (ब्रह्म) का सुनियोजित जाल है। जिस कारण उसके द्वारा भेजे अवतारों की महिमा बन जाए तथा सर्व आस पास के प्राणी उस पर आसक्त होकर उसके द्वारा बताई ब्रह्म साधना पर अटल हो जाऐं। जब परमेश्वर का संदेशवाहक आए तो कोई विश्वास न करें। जैसे हजरत ईसा मसीह के चमत्कारों में लिखा है कि एक प्रेतात्मा से पीडि़त व्यक्ति को ठीक कर दिया। यह काल स्वयं ही किसी प्रेत तथा पित्तर को प्रेरित करके किसी के शरीर में प्रवेश करवा देता है। फिर उसको किसी के माध्यम से अपने भेजे नबी के पास भेजकर किसी फरिश्ते को नबी के शरीर में प्रवेश करके उसके द्वारा प्रेत को भगा देता है। उसके अवतार (मसीह/नबी) की महिमा बन जाती है। या कोई साधक पहले का भक्ति युक्त होता है। उससे भी ऐसे चमत्कार उसी की कमाई से करवा देता है तथा उस साधक की महिमा करवा कर हजारों को उसका अनुयाई बनवा कर काल जाल में फंसा देता है तथा उस पूर्व भक्ति कमाई युक्त सन्त साधक की कमाई को समाप्त करवा कर उस सन्त को नरक में डाल देता है।
इसी तरह का उदाहरण पवित्र बाईबल ‘शमूएल‘ नामक अध्याय 16ः14-23 में है कि शाऊल नामक व्यक्ति को एक प्रेत दुःखी करता था। उसके लिए बालक दाऊद को बुलाया जिससे उसको कुछ राहत मिलती थी। क्योंकि हजरत दाऊद भी ज्योति निरंजन का भेजा हुआ पूर्व शक्ति युक्त साधक पूर्व कमाई वाला था। जिसको ‘जबूर‘ नामक किताब ज्योति निरंजन/ब्रह्म ने बड़ा होने पर उतारी।
हजरत ईसा मसीह की मृत्यु पूर्व ही निर्धारित थी। स्वयं ईसा जी ने कहा कि मेरी मृत्यु निकट है तथा तुम (मेरे बारह शिष्यों) में से ही एक मुझे विरोधियों को पकड़ाएगा। उसी रात्री में सर्व शिष्यों सहित ईसा जी एक पर्वत पर चले गए। वहाँ उनका दिल घबराने लगा। अपने शिष्यों से कहा कि आप जागते रहना। मेरा दिल घबरा रहा है। मेरा जी निकला जा रहा है। तुम भी परमात्मा से मेरे जीवन की रक्षा के लिए, प्रार्थना करो, ऐसा कह कर हजरत यीशु जी ने कुछ दूरी पर जाकर स्वयं हजरत इसा जी ने मुंह के बल पृथ्वी पर गिरकर प्रार्थना की (38,39), वापिस चेलों के पास लौटे तो वे सो रहे थे। यीशु ने कहा क्या तुम मेरे साथ एक पल भी नहीं जाग सकते। जागते रहो, प्रार्थना करते रहो, ताकि तुम परीक्षा में असफल न हो जाओ। मेरी आत्मा तो मरने को तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है। इसी प्रकार यीशु मसीह ने तीन बार कुछ दूर पर जाकर प्रार्थना की तथा फिर वापिस आए तो सर्व शिष्यांे को तीनों बार सोते पाया। ईसा मसीह के प्राण जाने को थे, परन्तु चेला राम मस्ती में सोए पड़े हैं। गुरु जी की आपत्ति का कोई गम नहीं।
तीसरी बार भी सोए पाया तब कहा मेरा समय आ गया है, तुम अब भी सोए पड़े हो। इतने में तलवार तथा लाठी लेकर बहुत बड़ी भीड़ आई तथा उनके साथ एक ईसा मसीह का खास शिष्य था, जिसने तीस रूपये के लालच में अपने गुरु जी को विरोधियों के हवाले कर दिया।(मत्ती 26ः24-55 पृष्ठ42-44)
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुण्यात्मा ईसा मसीह जी को केवल अपना पूर्व का निर्धारित जीवन काल ही प्राप्त हुआ जो उनके विषय में पहले ही पूर्व धर्म शास्त्रों में लिखा था। ‘‘मत्ती रचित समाचार‘‘ पृष्ठ1 पर लिखा है कि याकुब का पुत्र युसूफ था। युसूफ ही मरियम का पति था जिस से हजरत ईसा मसीह का जन्म हुआ। मरियम को एक फरिश्ते से गर्भ रहा था।(मत्ती 1ः1-18)
एक स्थान पर हजरत ईसा जी ने कहा है कि मैं याकुब (जो मरियम के पति का भी पिता था) से भी पहले था। संसार की दृष्टि में ईसा मसीह का दादा जी याकुब था। यदि ईसा जी ृ वाली आत्मा बोल रही होती तो ईसा जी नहीं कहते कि मैं याकुब अर्थात् अपने दादा जी से भी पहले था। इससे सिद्ध है कि ईसा जी में कोई अन्य फरिश्ता बोल रहा था जो प्रेतवत प्रवेश कर जाता था, भविष्यवाणी कर जाता था तथा वही चमत्कार करता था। यदि यह माने कि हो सकता है याकूब वाली आत्मा ही हजरत इसा रूप में जन्मी हो तो बाईबल में लिखा लेख गलत सिद्ध होता है कि ईसा को परमात्मा ने अपने पास से भेजा था। ईसा जी प्रभु के पुत्र थे।
एक और अनोखा उदाहरण ग्रन्थ बाईबल 2 कुरिन्थियों 2ः12-17 पृष्ठ259-260 में स्पष्ट लिखा है कि एक आत्मा किसी में प्रवेश करके पत्र द्वारा लिख रही है। कहा है कि 14. परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो मसीह में सदा हम को जय उत्सव में लिए फिरता है और अपने ज्ञान की सुगन्ध हमारे द्वारा हर जगह फैलाता है। 17. हम उन लोगों में से नहीं हैं जो परमेश्वर के वचनों में मिलावट करते हैं। हम तो मन की सच्चाई और परमेश्वर की ओर से परमेश्वर की उपस्थिति जान कर मसीह में बोलते हैं।
उपरोक्त विवरण पवित्र बाईबल के अध्याय कुरिन्थियों 2ः12 से 18 पृष्ठ 259-260 से ज्यों का त्यों लिखा है। इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं 1. मसीहा (नबी अर्थात् अवतार) में कोई अन्य फरिश्ता बोलकर किताबें लिखाता है। जो प्रभु का भेजा हुआ होता है वह तो प्रभु का संदेश ज्यों का त्यों बिना परिवर्तन किए सुनाता है। 2. दूसरी बात यह भी सिद्ध हुई कि मसीह (नबी) में अन्य आत्मा भी बोलते हैं जो अपनी तरफ से मिलावट करके भी बोलते हैं। यही कारण है कि र्कुआन शरीफ (मजीद) तथा बाईबल आदि में माँस खाने का आदेश अन्य आत्माओं का है, प्रभु का नहीं है। उपरोक्त विवरण से यह भी स्पष्ट है कि फरिश्ता कह रहा है कि प्रभु महिमा रूपी सुगंध फैलाने के लिए प्रेत की तरह प्रवेश करके प्रभु हमारा ही प्रयोग किसी मसीह (अवतार/नबी) में करता है। चमत्कार करते हैं फरिश्ते, नाम होता है नबी का तथा भोली आत्माऐं उस नबी को पूर्ण शक्ति युक्त मानकर उसी के अनुयाई बन जाते हैं। उसी के द्वारा बताए भक्ति मार्ग पर दृढ़ हो जाते हैं। जिस समय पूर्ण परमात्मा का संदेशवाहक आता है तो उसकी बातों पर अविश्वास करते हैं। यह सब ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) का जाल है।
एक पर्वत पर ईसा जी 30 वर्ष की आयु में प्रभु से प्राण रक्षा के लिए घबराए हुए बार-बार प्रार्थना कर रहे थे। उसी समय उन्हीं का एक शिष्य 30 रूपये के लालच में अपने गुरु जी के विरोधियों को साथ लेकर उसी पर्वत पर आया वे तलवार तथा लाठियां लिए हुए थे। विरोधियों की भीड़ ने उस गुप्त स्थान से ईसा जी को पकड़ा जहाँ वह छुप कर रात्री बिताया करता था। क्योंकि हजरत मूसा जी के अनुयाई यहूदी ईसा जी के जानी दुश्मन हो गए थे। उस समय के महन्तांे तथा संतों व मन्दिरों के पूजारियों को डर हो गया था कि यदि हमारे अनुयाई हजरत ईसा मसीह के पास चले जायेंगे तो हमारी पूजा का धन कम हो जाएगा। ईसा मसही जी को पकड़ कर राज्यपाल के पास ले गए तथा कहा कि यह पाखण्डी है। झूठा नबी बन कर दुनिया को ठगता है। इसने बहुतों के घर उजाड़ दिए हैं। इसे रौंद(क्रस) दिया जाए। राज्यपाल ने पहले मना किया कि संत, साधु को दुःखी नहीं करते, पाप लगता है। परन्तु भीड़ अधिक थी, नारे लगाने लगी इसे रौंद (क्रस कर) दो। तब राज्यपाल ने कहा जैसे उचित समझो करो। तीस वर्ष की आयु में ईसा जी को दीवार के साथ लगे अंग्रेजी के अक्षर ज् (टी) के आकार की लकड़ी के साथ खड़ा करके दोनों हाथों की हथेलियों में लोहे की मोटी कील (मेख) गाड़ दी। ईसा जी की मृत्यु असहनीय पीड़ा से हो गई। मृत्यु से पहले हजरत ईसा जी ने उच्चे स्वर में कहा - हे मेरे प्रभु ! आपने मुझे क्यों त्याग दिया ? कुछ दिनों के बाद हजरत ईसा जी फिर दिखाई दिए तथा फिर कुछ स्थानों पर दर्शन व प्रवचन करके अन्तध्र्यान हो गए। (पवित्र बाईबल मती 27 तथा 28/20 पृष्ठ45 से 48)
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि यह ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) अपने अवतार को भी समय पर धोखा दे जाता है। पूर्ण परमात्मा ही भक्ति की आस्था बनाए रखने के लिए स्वयं प्रकट होता है। पूर्ण परमात्मा ने ही ईसा जी की मृत्यु के पश्चात् ईसा जी का रूप धारण करके प्रकट ृ होकर ईसाईयों के विश्वास को प्रभु भक्ति पर दृढ़ रखा, नहीं तो ईसा जी के पूर्व चमत्कारों को ृ देखते हुए ईसा जी का अंत देखकर कोई भी व्यक्ति भक्ति साधना नहीं करता, नास्तिक हो जाते। (प्रमाण पवित्र बाईबल में यूहन्ना ग्रन्थ अध्याय 16 श्लोक 4 से 15) ब्रह्म(काल) यही चाहता है। काल (ब्रह्म) पुण्यात्माओं को अपना अवतार (रसूल) बना कर भेजता है। फिर चमत्कारों द्वारा उसको भक्ति कमाई रहित करवा देता है। उसी में कुछ फरिश्तों (देवताओं) को भी प्रवेश करके कुछ चमत्कार फरिश्तों द्वारा उनकी पूर्व भक्ति धन से करवाता है। उनको भी शक्ति हीन कर देता है। काल के भेजे अवतार अन्त में वे किसी तरह कष्ट प्राप्त करके मृत्यु को प्राप्त हों। इस प्रकार ब्रह्म (काल/ज्योति निरंजन) के द्वारा भेजे नबियों (अवतारों) की महिमा हो जाती है। अनजान साधक उनसे प्रभावित होकर उसी साधना पर अडिग हो जाते हैं। जब पूर्ण परमात्मा या उनका संदेशवाहक वास्तविक भक्ति ज्ञान व साधना समझाने की कोशिश करता है तो कोई नहीं सुनता तथा अविश्वास व्यक्त करते हैं। यह जाल काल प्रभु का है। जिसे केवल पूर्ण परमात्मा ही बताता है तथा सत्य भक्ति प्रदान करके आजीवन साधक की रक्षा करता है। सत्य भक्ति करके साधक पूर्ण मोक्ष को प्राप्त करता है।
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